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Saturday, September 5, 2009

वो बचपन


बहुत पीछे छोड़ हैं हम
वो घर आंगन
वो बचपन
जो खिलखिला के हंसा करता था
बच्चों की कमीज पकड़कर
रेल बना करती थी
हमारे हंसने पर
नानी हंसा करती थी
पंजों पर खड़े होकर
खिड़की से बचपन
सड़क देखा करता था
मुटठी में तितलियां बंदकर
इठलाया करता था
बहुत पीछे छोड़ आए
 बचपन...
-सरफ़राज़ ख़ान