मेरा दिल
जब
तारे की तरह टूट रहा था
तब
लोग भीड़ लगाए
अपने दिलों को
जोड़ने की
दुआएं मांग रहे थे
कोई मेरा दुख
महसूस नहीं कर रहा था
कोई यह नहीं समझ रहा था
दुखी टूटता हुआ तारा
किसी को भला क्या दे सकता है
वो यह भी नहीं कह सकता-
सरफ़राज़ !
मैंने छोटी-बड़ी झूठी ही सही
कोई तो ख़ुशी दी है...
-सरफ़राज़ ख़ान
No comments:
Post a Comment