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Saturday, September 5, 2009

वो बचपन


बहुत पीछे छोड़ हैं हम
वो घर आंगन
वो बचपन
जो खिलखिला के हंसा करता था
बच्चों की कमीज पकड़कर
रेल बना करती थी
हमारे हंसने पर
नानी हंसा करती थी
पंजों पर खड़े होकर
खिड़की से बचपन
सड़क देखा करता था
मुटठी में तितलियां बंदकर
इठलाया करता था
बहुत पीछे छोड़ आए
 बचपन...
-सरफ़राज़ ख़ान

8 comments:

  1. मार्मिक... इसके आगे भी ज़रूर लिखिएगा... कुछ और बयान करिएगा...

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  2. ओह !!!!!!!!! कितना सुन्दर है यह बचपन…………………और कविता भी कितनी अच्छी है ।

    चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.

    गुलमोहर का फूल

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  3. rachna achchi lagi flow bhi achhca tha umeed hai aesi hi rachnaae aage bhi padne ko milegi..

    Deepak "bedil'

    http://ajaaj-a-bedil.blogspot.com

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  4. बचपन की यादें जिंदगी के तपते रेगिस्तान में शीतलता प्रदान करती है ..अच्च्छी रचना

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  5. बचपन की यादें जिंदगी के तपते रेगिस्तान में शीतलता प्रदान करती है ..अच्च्छी रचना

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