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Tuesday, December 10, 2013

ये लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी का ब्‍लॉग है


एक ज़माना हुआ करता था जब शाम को खाना खाने के बाद बच्‍चे अपने दादा-दादी को घेर कर बैठ जाया करते थे और कहानियां सुना करते थे. राजा-रानी, परी-जादूगरों की वे कहानियां इतनी मज़ेदार हुआ करती थीं कि कब उन्‍हें सुनते-सुनते घंटों बीत जाया करते थे, पता ही नहीं चलता था. समय बदला, लोग बदले और साथ ही बदल गया परिवार का ढांचा. अब न तो परिवार में दादा-दादी के लिए जगह बची है और न ही बचा है कहानियों के लिए स्‍पेस. आज के प्रतिद्व‍न्द्विता के युग में ढली पढ़ाई में न तो बच्‍चों के पास कहानियों के लिए समय बचा है और न ही कहानियों के सुनाने वालों के पास अब बच्‍चे ही पहुंच पाते हैं.

राजा-रानी का दौर ख़्त्म हुए एक युग बीत चुका है. यही कारण है कि घोड़े पर चढ़ कर आते हुए राजकुमार अब कहीं नहीं नज़र आते. राजकुमारियों के क़िस्से भी अब पुराने पड़ चुके हैं. लेकिन बावजूद उसके वे कथानक, वे स्‍मृतियां अब भी लोगों के ज़ेहन में ज़िन्दा हैं. यही कारण है कि मां-बाप अपने बच्‍चों की तारीफ़ करते हुए उन्‍हें अक्‍सर ‘राजा बेटा’ और ‘नन्‍हीं राजकुमारी’ जैसे विशेषणों का इस्‍तेमाल करते पाए जाते हैं. ब्‍लॉगजगत में जहां एक ओर ऐसे तमाम नन्‍हें राजकुमार और राजकुमारियां अपनी शैतानियों के कारण चर्चा में रहते हैं, वहीं एक शख़्सियत ऐसी भी है, जो यूं तो ब्‍लॉग की दुनिया की चर्चित हस्‍ती है, लेकिन अपने को शब्‍दों के द्वीप की राजकुमारी के रूप में प्रस्‍तुत करती है. उस चर्चित ब्‍लॉगर का नाम है सुश्री फ़िरदौस ख़ान.

फ़िरदौस एक युवा लेखिका हैं. वे पत्रकार के साथ-साथ शायरा और कहानीकार के रूप में भी जानी जाती हैं और उर्दू, हिन्दी तथा पंजाबी साहित्‍य में समान रूप से रूचि रखती हैं. अनेक दैनिक एवं साप्‍ताहिक समाचार पत्रों, रेडियो तथा टेलीविज़न चैनलों के लिए काम कर चुकी फ़िरदौस वर्तमान में 'स्टार न्यूज़ एजेंसी' और 'स्टार वेब मीडिया' में समूह संपादक का दायित्व संभाल रही हैं. वे वर्ष 2007 से ब्‍लॉग जगत में सक्रिय हैं और अपने ब्‍लॉग ‘मेरी डायरी’ (http://firdaus-firdaus.blogspot.com/) के लिए जानी जाती हैं.

‘मेरी डायरी’ फ़िरदौस का एक समसामयिक ब्‍लॉग है, जिसमें वे बेबाक शैली में अपने विचार रखती हैं. साहित्‍य और विशेषकर उर्दू साहित्‍य से गहरा जुड़ाव होने के कारण जहां उनके शब्‍दों में उर्दू की मिठास मिलती है, वहीं पत्रकारिता के गहन अनुभव के कारण उनकी भाषा में एक तीखी धार का भी एहसास होता है. यही कारण है कि वे जब किसी ज्‍वलंत मुद्दे पर अपनी बात रखती हैं, तो वह काफ़ी मारक हो जाती है. जब वे अपनी क़लम की ज़द में धार्मिक रीति-रिवाजों को लेकर आती हैं, तो अक्‍सर विवाद की ऊंची-ऊंची लपटें उठने लगती हैं. कभी-कभी इन विषयों पर लिखते समय अपने ख़िलाफ़ उठने वाले विवाद के कारण ऐसा भी होता है कि वे शालीनता की सीमा रेखा के आसपास पहुंच जाती हैं. लेकिन न तो वे इस बात का कोई मलाल रखती हैं और न ही वे इस वजह से होने वाली तीखी आलोचनाओं के कारण अपनी सोच से पीछे हटने के लिए तैयार नज़र आती हैं.


एक विचारवारन मुस्लिम महिला होने के कारण फ़िरदौस कठमुल्‍लावाद की सख्‍़त विरोधी हैं और मुस्लिम महिलाओं को आगे बढ़कर समाज की मुख्‍य धारा में शामिल होने की हिमायती हैं. वे गर्व के साथ अपने को भारतीय नारी कहती हैं और न सिर्फ़ मुस्लिम महिलाओं पर लादी गई ज़्यादतियों का विरोध करती हैं, वरन बड़े फ़ख़्र से बताती हैं कि हमने अम्मी, दादी, नानी, मौसी और भाभी को बुर्क़े की क़ैद से निजात दिलाई है. वे मुस्लिम समाज में व्‍याप्‍त दक़ियानूसी विचारधाराओं की सख़्त आलोचक हैं. यही कारण है कि उन्‍होंने अपने ब्‍लॉग पर सबसे ज़्यादा अगर किसी विषय पर लिखा है, तो वह इस्‍लाम और मुस्लिम समाज ही है.

'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक किताब की लेखिका फ़िरदौस हिन्‍दुस्‍तानी शास्‍त्रीय संगीत की भी जानकार हैं और अपनी साहित्यिक सेवाओं के लिए अनेक संस्‍थाओं द्वारा पुरस्‍कृत एवं सम्‍मानित हो चुकी हैं. उनके साहित्यिक रुझान की झलक उनके ब्‍लॉग ‘फ़िरदौस डायरी’ (http://firdausdiary.blogspot.com/) से मिलती है, जिसपर वे अपनी नज़्मों के साथ-साथ साहित्यिक एवं सांस्‍कृतिक महत्‍व के विषयों पर लेखन करती पाई जाती हैं. इसके अतिरिक्‍त वे अपने उर्दू ब्‍लॉग ‘जहांनुमा, पंजाबी ब्‍लॉग ‘हीर’ एवं अंग्रेजी ब्‍लॉग ‘द पैराडाइज़’ के लिए भी जानी जाती हैं, जिनके लिंक उनके हिन्‍दी ब्‍लॉग ‘मेरी डायरी’ पर देखे जा सकते हैं.

अपनी ज़बरदस्‍त टैग लाइन ‘मेरे अल्फ़ाज़, मेरे जज़्बात और मेरे ख़्यालात की तर्जुमानी करते हैं... क्योंकि मेरे लफ़्ज़ ही मेरी पहचान हैं’ के कारण पहली नज़र में पाठकों को आकर्षित करने वाली फ़िरदौस एक गंभीर ब्‍लॉगर के रूप में जानी जाती हैं और अपने विविधतापूर्ण तथा प्रभावी लेखन के कारण ब्‍लॉगरों की बेतहाशा भीड़ में भी दूर से पहचानी जाती हैं.

(जनसंदेश टाइम्‍स, 14 दिसम्‍बर, 2011 के 'ब्‍लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित Dr. Zakir Ali Rajnish का लेख)ये लफ्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी का ब्‍लॉग है

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